विशेष सवांददाता: देहरादून में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला ‘झंडा मेला’ (झंडेजी मेला) उत्तराखंड का एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है। यह मेला दरबार श्री गुरु राम राय महाराज के सम्मान में आयोजित किया जाता है, जो सिख धर्म के सातवें गुरु, गुरु हर राय जी के सुपुत्र थे। इस मेले की शुरुआत 17वीं शताब्दी में हुई थी और तब से यह निरंतर आयोजित होता आ रहा है। इसके अलावा, भजन संध्या, कीर्तन, और धार्मिक प्रवचन भी आयोजित किए जाते हैं, जो श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करते हैं।
इस दिन आयोजित होता है झंडा मेला
झंडा मेला होली के पांचवें दिन, अर्थात् चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी को प्रारंभ होता है। इस दिन दरबार साहिब में विशाल झंडेजी का आरोहण किया जाता है, जिसे देखने के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु देहरादून पहुंचते हैं। यह मेला लगभग एक महीने तक चलता है, जिसमें विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। मेले की शुरुआत झंडेजी के आरोहण से होती है, जिसे ‘ध्वजारोहण’ कहा जाता है। यह प्रक्रिया विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि इसमें पुराने झंडे को उतारकर नए झंडे का आरोहण किया जाता है। इस अवसर पर विशेष प्रार्थनाएं और कीर्तन आयोजित किए जाते हैं। श्रद्धालु इस दौरान दरबार साहिब में मत्था टेकते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मेले के दौरान दरबार साहिब परिसर में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। स्थानीय कलाकारों द्वारा गढ़वाली, कुमाऊंनी, जौनसारी और अन्य लोक नृत्यों का प्रदर्शन किया जाता है, जो उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करता है।
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इस दौरान देहरादून शहर में की जाती है विशेष सजावट
18 मार्च 2025 को पुरे जनसमूह के साथ झंडे जी का मेला इस वर्ष शुरू होने वाला है । मेले में लगने वाले बाजार भी विशेष आकर्षण का केंद्र होते हैं। यहां स्थानीय हस्तशिल्प, कपड़े, आभूषण, और पारंपरिक वस्त्रों की बिक्री होती है। इसके अलावा, उत्तराखंडी व्यंजनों का स्वाद चखने का अवसर भी मिलता है, जिसमें सिंगोरी, बाल मिठाई, आलू के गुटके, और झंगोरे की खीर प्रमुख हैं। मेले के दौरान देहरादून शहर में विशेष सजावट की जाती है। सड़कों, बाजारों, और प्रमुख स्थलों को रंग-बिरंगी लाइटों और फूलों से सजाया जाता है, जो शहर की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। इसके अलावा, सुरक्षा व्यवस्था भी कड़ी की जाती है, ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो। झंडा मेला न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह उत्तराखंड की सांस्कृतिक एकता और सामाजिक समरसता का भी प्रतीक है। यह मेला विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों के लोगों को एक साथ लाता है, जो आपसी भाईचारे और प्रेम का संदेश देता है।
दूर-दूर से आती है संगते दरबार साहिब में मत्था टेकने
झंडे जी के मेले के दौरान दूर-दराज से संगते देहरादून दरबार साहिब में मत्था टेकने के लिए पहुँचती है। पुरे महीने भर आस-पास के बाज़ार में इस दौरान रौनक रहती है। यदि आप उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं का अनुभव करना चाहते हैं, तो झंडा मेला आपके लिए एक उत्कृष्ट अवसर है। यह मेला न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है, बल्कि आपको उत्तराखंड की लोक कला, संगीत, नृत्य, और व्यंजनों से भी रूबरू कराता है। देहरादून का झंडा मेला एक ऐसा उत्सव है, जो धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह मेला न केवल उत्तराखंड, बल्कि पूरे देश की सांस्कृतिक धरोहर को संजोए हुए है और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बना रहेगा।